समज
दुसरो को समजणे
के लिए चाहिए एक समज।
अगर वो समज नही है तो
क्या काम की बाकी समज।।
सबकी समज समज में
होता है बहूत फरक।
किसीकी समज बनी
देती है दुसरो का जीवन नरक।।
समज कैसी बनती है
यह है सबको मालूम।
लेकीन दुसरो की समज
से लोग रहते है बेमालूम।।
समज कौन बनाता है
और उनका रूप कैसा।
समज का रंग होता है
व्यक्ती है जैसा।।
कही बार समज
होता है गैरसमज।
तब बरबाद हो
जाता है पूरा समाज।।
दुसरो की समज को
समजाने की कोशीश करो।
अपना ही समज
सही है ऐसा मत करो।।
प्रा. दगा देवरे
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